मटरुआ कहता है कि सनातन मूल्यों एवं परंपराओं का सम्मान करें
नानेमऊ। हेलो ...हेलो आवाज़ नही आ रही है ? कहाँ हो नेटवर्क में आओ, आवाज़ बिल्कुल कट कट कर आ रही है। फर्छ आवाज़ नही आ रही है। बार बार हेलो हेलो करते हुए मटरुआ ने अपने मित्र को फ़ोन कर रहा था।उधर से डब्लू ने फ़ोन पर बताया कि वो अभी अंग्रेज़ी शौचालय के कमोड पर बैठा हुआ है इसलिए फर्छ आवाज नही आ रही होगी। बाहर निकल कर फ़ोन करता हूँ। ये विडम्बनापूर्ण स्थित है शहरों नगरों में रहने वाले लोगों की जिनके यहां सनातन मूल्यों की कोई क़ीमत नही है। हमें याद आता है कैसे मेरे दादा जी शौच से पूर्व कान पर जनेऊ चढ़ा लेते थे और पूरी शुद्धि के पश्चात् हाथ मुँह पैर धोकर ही कान से जनेऊ उतारते थे।सख़्त नियम था यह और जब तक कान पर जनेऊ चढ़ा होता था तब तक बोलते भी नही थे। साबुन न भी मिले कोई बात नही मिट्टी से हाथ मटियाकर धो लेते थे। पूरी शुद्धता के पश्चात् ही कुछ अन्य कार्य करते या बोलते थे।वो पीढ़ी धीरे धीरे हमसे दूर होती जा रही है, साथ ही हम भूलते जा रहे है सनातन मूल्यों और नियमों को। आज की अंग्रेज़ी मीडीयम से पढ़े हुए युवाओं को जनेऊ एक बोझ लगता है। इसके पीछे कारण क्या है इसको जानने की कभी कोशिश नही करते है। हमारे पूर्वज ऋषि महर्षियों के बनाए हुए नियम विशुद्ध विज्ञान ही हैं। बहुत सारे रहस्यों को समेटें हुए है अपने आपमें। एक कोरोना महामारी आई और सारे विश्व के वैज्ञानिक असफल हो गए। विकसित देश अपने सबसे बुरे दौर में पहुँच गए थे।हम सबने देखा था भारतीय योग और आयुर्वेद ने सबको रास्ता दिखाया था। मटरुआ कहता है सनातन मूल्यों का सम्मान कीजिए और मानिए अपने पूर्वजों की परम्पराओं को अन्यथा विनाश निश्चित है। जहाँ विज्ञान समाप्त होता हैं वहाँ से “वेद विज्ञान“ प्रारम्भ होता हैं। सनातन ही सत्य है इसलिए सनातन अपनाइए और सनातनी बनिए।
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बहुत सुंदर
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