शासकीय महाविद्यालय कुरई में 15 अक्टूबर 2022 को हिन्दी विषय के महत्व पर परिचर्चा आयोजित
सिवनी। शासकीय महाविद्यालय उरई में 15 अक्टूबर 2022 को हिंदी विषय के महत्व पर परिचर्चा आयोजित की गई। इस अवसर पर महाविद्यालय प्राचार्य पवन सोनिक, डाॅ. श्रुति अवस्थी, डाॅ. कंचनबाला डावर, जयप्रकाश मेरावी, तीजेश्वरी पारधी, सारंग लाडविकर की गरिमामयी उपस्थिति रही। कार्यक्रम की शुरूआत मां सरस्वती का पूजन अर्चन व द्वीप प्रज्जवलन से हुई। इस अवसर पर महाविद्यालय की छात्रा सदफ नाज ने हिन्दी की वर्तमान दशा दिशा पर विचार रखते हुए श्यामसुंदर रावत द्वारा लिखित यह कविता ‘‘हे भारत के राम जागो, मैं तुम्हें जगाने आई हूँ।’’ तत्पश्चात हिन्दी के प्राध्यापक जयप्रकाश मेरावी ने कहा कि हिन्दी हमारे सम्मान और गर्व की भाषा है। यह भाषा हमारे संस्कारों व संस्कृति की पहचान है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए हमारी संविधान सभा द्वारा 14 सितंबर 1949 को भारतीय संघ की राजभाषा के रूप में हिन्दी को स्वीकार किया गया था। इसी कड़ी में डाॅ. श्रुति अवस्थी ने कहा कि भाषा में सभी भावों को भरने की अद्भुत क्षमता है यही कारण है कि हिन्दी को भारत की जननी भाषा कहा जाता है। तीजेश्वरी पारधी ने कहा कि ‘‘जन-जन को जो मिलाती है, वो भाषा हिन्दी कहलाती है’’ प्राचार्य पवन सोनिक ने कहा कि वैश्वीकरण एवं बाजारवाद के संदर्भ में हिन्दी का महत्व इसलिए बढेगा क्योंकि भविष्य में भारत व्यावसायिक, व्यापारिक एवं वैज्ञानिक दृष्टि से एक विकसित देश होगा। इस कार्यक्रम में नेताजी सुभाष चंद्र बोस कन्या महाविद्यालय सिवनी से पधारे विशिष्ट वक्ता प्रो0 पंकज शेन्डे ने कहा कि ‘‘हिन्दी का महत्व न होगा कम, चाहें कर लें कितनी तरक्की हम।’’ तदोपरांत सायं 6पर महाविद्यालय में ‘‘एक दीपक मातृभाषा के नाम’’ से प्रज्जवलित किया गया। कार्यक्रम की व्यवस्था को बनाने में महाविद्यालय के विद्यार्थियों जिनमें किम्मी पराते, अभिषेक नागवंशी, शिफा अंजुम, रेहाना खान, निकिता नागवंशी, शिवम शिव, शुभम सोनी, राजकली भलावी, रोहित मरकाम, ईशा लाजेंवार, सदफ नाज, फिजा खान, सानिया अंजुम, पूजा डोंगरे का योगदान रहा हैं। कार्यक्रम का संचालन प्रो0 पंकज गहरवार ने किया।कार्यक्रम के अंतिम पड़ाव पर प्रोफेसर पंकज गहरवार ने हरिवंशराय बच्चन की कविता पढ़ा कि "किंतु ए निर्माण के प्रतिनिधि, तुझे होगा बताना, जो बसते हैं , फिर उजड़ते हैं, प्रकृति के जड़ नियम से, पर उजडों को फिर बसाना कब मना हैं, हैं अंधेरी रात पर दिया जलाना कब मना हैं"।
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