बड़ी खबर! मध्य प्रदेश छात्र शक्ति संगठन प्रमुख प्रीतम डहेरिया ने लिए सन्यास


बड़ी खबर! मध्य प्रदेश छात्र शक्ति संगठन प्रमुख प्रीतम डहेरिया ने लिए सन्यास

केएमबी दिनेश नागवंशी

मध्य प्रदेश छात्र शक्ति संगठन प्रमुख प्रीतम डहेरिया बीते दिनों काफी चर्चा में है, आपको बता दें, कुछ दिन पहले एक पोस्ट के माध्यम से इन्होंने जानकारी दी थी कि वह सन्यास ग्रहण कर रहे हैं, उसके बाद वह भारत के विभिन्न तीर्थ स्थल पर जाकर साधुओं के ज्ञान मार्ग से संन्यास जीवन में प्रवेश किए,  उन्होंने हरिदवार में अवधूत मण्डल हरिद्वार आश्रम के योगी केशवानंद गिरी महाराज जी के संरक्षण में 2 दिन कि पूजा का आयोजन करवाया था, जिसके बाद उन्होने सन्याशी जीवन में प्रवेश लिया आपको जानकर हैरानी होगी कि उन्होने दीक्षा प्राप्त नहीं किए हैं, उनका मानना है कि सन्यास लेने या देने कि प्रक्रिया नहीं है, इसके लिए आकर्षण ईश्वर कि कृपा से ही प्राप्त होता है, सन्यास का अर्थ होता है इन्द्रियों को इतना नियंत्रण करना कि वह अनुपयोगी हो जाएं। पर सन्यास कि अपनी एक मर्यादा है। विधियां और नियम भौतिक साधनाओं के लिए होते हैं। सन्यास पूर्णतः भावनात्मक ज्ञान मार्ग विचार शक्ति तर्क शक्ति मरण शक्ति के द्वारा भौतिकता को भेद कर अंतिम सत्य तक पहुंचते हैं। सन्यासी जीवन में सभी इन्द्रियों सहित आंख, कान, नाक, जीभ और त्वचा; पांच कर्मेंद्रियां- हाथ, पैर, मुंह, गुदा और लिंग और चार अंतःकरण- मन बुद्धि चित्त, अहंकार ,मन ,घ्राण, रसना, चक्षु, त्वक् तथा श्रोत्र इनको समाप्त कर चित को इश्वर कि आराधना में एकाग्र करना होता है। पर इन्होंने कुछ  अलग ही कहा है। सबकुछ करो लेकिन उससे राग मत लो, स्वतंत्र होकर अपने और जगत के सत्य को जानने का प्रयत्न करो, जब इनसे पूछा गया आपने दीक्षा क्यों नहीं लिए तब उन्होने बताया कि गुरु का मार्ग निर्देशन और उद्देश्य सन्यास रूपी उपलब्धि का ईंधन होता है। यह सभी भाव प्रधान होता है विधि प्रधान नहीं होती ना तो कपिल को किसी ने दीक्षा दी थी ना तो संक्रचार्य को ना तो आदित्यनाथ को कृष्ण से बढ़ा संन्यासी कोई नहीं था और राजा जनक को भी महान संन्यासी कहा जाता हैं । समाज में आज संन्यास शब्द को लेकर तमाम तरह की नकारात्मकता दिखाई देती है, इसके पीछे वजह है कि संन्यासियों ने अपने कर्म से समाज के आगे बहुत ही गलत और खराब उदाहरण पेश किए हैं। हालंाकि सारे संन्यासी खराब नहीं होते, उनमें से कुछ बहुत अच्छे भी होते हैं, जबकि काफी लोग अपने जीवनयापन के लिए इसे एक पेशे के रूप में चुन लेते हैं। कर्मफल का आश्रय न लेकर जो कर्तव्यकर्म करता है, वही संन्यासी तथा योगी है; और केवल अग्नि का त्याग करने वाला संन्यासी नहीं होता तथा केवल क्रियाओं का त्याग करने वाला योगी नहीं होता। कर्म संन्यास और कर्म योग दोनों मार्ग परम लक्ष्य की ओर ले जाते हैं लेकिन कर्मयोग कर्म संन्यास से श्रेष्ठ है। 
प्राप्त जानकारी अनुसार उनकी जन्मभूमि ग्राम  ढुटेरा 480991 के  किनारे स्थित  चंद्रूटोला में स्थित पंचमुखी हनुमान जी का मंदिर जिसे स्थापना के समय बल्केश्वर धाम  का नाम दिया गया था, वहां कुछ ही महीनों बाद भगवन शिव कि विशालकाय मूर्ति संत सिरोमणी प्रीतम जी महाराज के नेतृत्व में स्थापित कि जायेगी किसकी ऊंचाई लगभग 60 फिट ऊंची होगी, प्राप्त जानकारी अनुसार पंचमुखी हनुमान जी के मंदिर के पीछे स्थित पत्थर के ऊपर यह मूर्ति बनाई जाएगी।
और नया पुराने

Ads

विज्ञापन लगवायें

अपना विज्ञापन हमें भेजें व्हाट्सएप नं० 9415968722 पर

1 / 7
2 / 7
3 / 7
4 / 7
5 / 7
6 / 7
7 / 7

Ads

अपना विज्ञापन हमें भेजें व्हाट्सएप नं० 9415968722 पर

विज्ञापन लगवायें!!! S-1

1 / 3
2 / 3
3 / 3

विज्ञापन लगवायें!!! S-2

1 / 3
2 / 3
3 / 3
Description of Image 1

विज्ञापन लगवायें!!!

Description of Image 2

Description of Image 3

نموذج الاتصال