जीव और ईश्वर तथा भक्त और भगवान का मिलन ही कृष्ण और सुदामा का मिलन है, परमात्मा जिज्ञासा का विषय है, परीक्षा का नहीं
चांदा सुल्तानपुर। सुदामा से परमात्मा ने मित्रता का धर्म निभाया। राजा के मित्र राजा होते हैं रंक नहीं, पर परमात्मा ने कहा कि मेरे भक्त जिसके पास प्रेम धन है वह निर्धन नहीं हो सकता।कृष्ण और सुदामा दो मित्र का मिलन ही नहीं जीव व ईश्वर तथा भक्त और भगवान का मिलन था। जिसे देखने वाले अचंभित रह गए थे। आज मनुष्य को ऐसा ही आदर्श प्रस्तुत करना चाहिए। उक्त उदगार अवध धाम से पधारे भागवताचार्य आचार्य देवेंद्र जी महाराज ने पकड़ी कला में आयोजित सप्त दिवसीय श्रीमद्भागवत ज्ञानमहा यज्ञ के सप्तम दिवस पर कथा विश्राम दिवस पर व्यक्त किए।श्रद्धालुजनों और मुख्य यजमान क़ो कथा विस्तार से समझाते हुए कहा कि कृष्ण और सुदामा जैसी मित्रता आज कहां है। यही कारण है कि आज भी सच्ची मित्रता के लिए कृष्ण-सुदामा की मित्रता का उदाहरण दिया जाता है। द्वारपाल के मुख से जैसे सुना "पूछत दीनदयाल के धाम, बतावत आपन नाम सुदामा" सुनते ही द्वारिकाधीश नंगे पांव मित्र की अगवानी करने पहुंच गए। लोग समझ नहीं पाए कि आखिर सुदामा में क्या खासियत है कि भगवान खुद ही उनके स्वागत में दौड़ पड़े। श्रीकृष्ण ने स्वयं सिंहासन पर बैठाकर सुदामा के पांव पखारे। कृष्ण-सुदामा चरित्र प्रसंग पर श्रद्धालु भाव-विभोर हो उठे। उन्होंने आगे कहा कि श्रद्धा के बिना भक्ति नहीं होती तथा विशुद्ध हृदय में ही भागवत टिकती है। भगवान के चरित्रों का स्मरण, श्रवण करके उनके गुण, यश का कीर्तन, अर्चन, प्रणाम करना, अपने को भगवान का दास समझना, उनको सखा मानना तथा भगवान के चरणों में सर्वश्व समर्पण करके अपने अन्त:करण में प्रेमपूर्वक अनुसंधान करना ही भक्ति है। श्रीकृष्ण को सत्य के नाम से पुकारा गया। जहां सत्य हो वहीं भगवान का जन्म होता है। भगवान के गुणगान श्रवण करने से तृष्णा समाप्त हो जाती है। परमात्मा जिज्ञासा का विषय है, परीक्षा का नहीं। कथा श्रवण के लिए आसपास के तमाम गांव से बड़ी संख्या में श्रद्धालु भक्तगण की उपस्थिति रही। मुख्य जजमान रामनरायन उपाध्याय ने व्यास पीठ का पूजन किया। इस मौके पर ओमप्रकाश उपाध्याय, सूर्यनारायण, अवधनारायण, फूलचंद मिश्र, अमित, अरुण, धीरेंद्र, ज्ञान प्रकाश की उपस्थिति उल्लेखनीय रही।
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