शिक्षकों के समर्पण भाव ने पौनारखुर्द शासकीय प्राथमिक शाला का किया कायाकल्प
सिवनी। किसी भी कार्य को सफल बनाने में दृढ इच्छाशक्ति की महती भूमिका होती है। इस हेतु हमें कई नये-नये तरीके व कार्ययोजनाओं को अपनाना होता है। यथा दृढ इच्छाशक्ति एवं संभावनाओं के अनुकुलन से ही सफलता संभव होती है। ऐसी ही दृढ इच्छाशक्ति से जिले के बरघाट विकासखण्ड के एक छोटे से ग्राम पौनारखुर्द की है।पौनारखुर्द बसाहट आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र है जिसके ग्रामीण अधिकांशतः मजदूर वर्ग के है, जो ज्यादातर पलायन करते हैं। जिसके कारण बच्चों की शाला में दैनिक उपस्थिति बहुत कम रहती थी। इस कारण बच्चों का शैक्षणिक स्तर भी कमजोर था। शाला के शिक्षकों के अथक प्रयास ने उक्त समस्या का समाधान निकाल कर अन्य शालाओं को एक मिशाल दी है। विकासखण्ड बरघाट अंतर्गत शासकीय प्राथमिक शाला पौनारखुर्द विकासखण्ड के कोहीनूर हीरे के समान मानी जा सकती है। शिक्षक कमलेश तिवारी एवं रक्षानंद झा द्वारा अध्यापन कार्य करवाया जाता था। तब शाला में बच्चों की दर्ज संख्या 25 थी। शाला के दोनो शिक्षको में शाला के प्रति समर्पण भाव के कारण शाला का कायाकल्प किया जाने की प्रबल इच्छा थी। शिक्षकों की इस प्रबल इच्छा ने ही शाला को विकासखण्ड की आदर्श शाला के रूप में स्थापित की। शाला में अध्यान कार्य को अधिक गुणवत्तायुक्त करने एवं सभी कक्षाओं के विद्यार्थियों के सर्वागीण विकास हेतु एक और शिक्षक की आवश्यकता थी। अतः तत्कालीन जिला शिक्षा अधिकारी द्वारा एक अन्य शिक्षक रूपेन्द्र कुमार उईके की पद स्थापना की गयी। तीनों शिक्षकों के शाला के प्रति समर्पण भाव से शाला के कायाकल्प में संलग्न हो गये। इसी तारतम्यता में तीनों शिक्षको द्वारा शाला में अध्ययनरत 34 बच्चों को कपडे वितरित किए गए। विद्यालय के कायाकल्प के प्रथम चरण में तीनों शिक्षकों द्वारा 35000 रू व्यय कर शाला में विद्युत व्यवस्था की गई और प्रत्येक कक्ष में 02 पंखे, बरामदा में 02 पंखे एवं कार्यालय कक्ष में 02 पंखे, इलेक्ट्रानिक घटी, 42 इंच की एलईडी टीवी, डिश टीवी सहित तथा ट्यूबलाईट की व्यवस्था एवं 150000 रू व्यय कर शाला में रंगरोगन एवं आकर्षक वॉल पेंटिंग का कार्य, छात्रो को यातायात संबंधित जानकारी दिये जाने हेतु शाला के समस्त बाहरी दिवालो पर यातायात के संसाधनो की पेंटिंग की गई। जिसमें फायर ब्रिगेड, एबुलेंस, डायल 100 पुलिस वाहन, टैक्टर एवं शाला के मुख्य प्रवेश द्वार पर बस की पेंटिंग की गई है। शाला में पढने वाले बच्चों के लिये एवं कार्यालय हेतु फर्नीचर की व्यवस्था, जिसमें प्रत्येक कक्षा में राउंड टेबल एवं बच्चों के बैठने हेतु गद्देदार बैंच लगवाये गये। प्रत्येक कक्षाओं में कारपेट बिछवाये गये। कार्यालय के लिये सोफे एवं टेबिल लगवाये गये। जिसका कुल व्यय लगभग 150000 रूपये हुआ। शाला के कायाकल्प के प्रति अपने जज्बे को कम न करके बढ़ाते हुए तीनों शिक्षकों द्वारा शासन की महत्त्वाकांक्षी योजना ''मां की बगिया" अंतर्गत लगभग 01 एकड का किचन गार्डन बनाया गया जिसमें लगभग 35 प्रकार की सब्जियां लगवाई गयी। साथ ही बच्चों के मध्याह भोजन हेतु डायनिंग हॉल सह शैक्षणिक कक्ष का निर्माण किया गया। जिसमें एक साथ 50 बच्चे बैठकर भोजन एवं शैक्षणिक कार्य कर सकते हैं। इस प्रकार तीनों शिक्षको द्वारा छात्रों की पठन-पाठन में रूचि बनी रहे एवं उनकी सुविधाओं दिृष्टगत रखते हुए कुल लगभग 10 लाख रूपये राशि खर्च कर शाला विभिन्न कार्य करवाए गए। शाला के कायाकल्प के कारण छात्र अब पूरे शैक्षणिक सत्र में लगभग 200 दिवस उपस्थित रहने लगे हैं तथा नियमित शाला आकर लगन से खुशनुमा महौल में शैक्षणिक गतिविधियां अर्जित कर रहे हैं, जिसका मुख्य कारण शाला का वातावरण है। बच्चो को आकर्षक विद्यालय परिसर में रहना अत्यधिक मजेदार लगने लगा है। शिक्षकों द्वारा किये गये कार्यो का परिणाम बच्चों के शैक्षणिक स्तर के अलावा शाला कि दर्ज संख्या में निरंतर वृद्धि निम्न सत्र 2018-19 में दर्ज संख्या 25 वर्ष 2019.20 में दर्ज संख्या 27 वर्ष 2020.21 में दर्ज संख्या 35 वर्ष 2021.22 में दर्ज संख्या 37 एवं वर्तमान वर्ष में दर्ज संख्या 40 हो चुकी है।
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