न जाने कौन से गुण पर दयानिधि रीझ जाते हैं- पण्डित राज कुमार मिश्र शास्त्री
बल्दीराय, सुलतानपुर। कलियुग में भगवान के नाम का संकीर्तन ही प्राणिमात्र के मुक्ति का साधन है। श्रीमद्भागवत कथा सुनने व कराने का सौभाग्य संसार मे बिरले लोंगों को ही प्राप्त होता है।उक्त बातें बल्दीराय में चल रही श्रीमद्भागवत कथा के आखिरी दिन कथा व्यास ने अर्जुन के कहने पर यमुना रूपी कन्या के उध्दरण की कथा व यमुना नदी के साथ श्रीकृष्ण के विवाह का मनोहारी वर्णन किया।गरुण द्वारा सम्पूर्ण पृथ्वी के भ्रमण कराये जाने की के दौरान असंख्य स्त्रियों की करूँण पुकार पर भौमासिन्ध के बध की कथा व उन सभी के उद्धार के साथ उन सभी के साथ श्रीकृष्ण के विवाह की कथा का सुंदर वर्णन किया। कथा व्यास ने अंतिम दिवस की कथा में श्रीकृष्ण द्वारा अपने उन सभी भक्तों के कल्याण की कथा का वर्णन किया जो किसी न किसी रूप में भगवान की आराधना में लीन थे। संगीताचार्य मधुकर जी के, मेरा छोटा सा संसार। हरि आ जाओ एक बार। न जाने कौन से गुण पर दयानिधि रीझ जाते हैं।जैसे मधुर भजनों पर भक्तों को भाव विभोर करते रहे।कथा के अंत मे मुख्य यजमान जय बहादुर सिंह व दयावती सिंह ने व्यासपीठ की आरती उतार कर सभी के मंगल की कामना की।इस मौके पर विशाल शुक्ल, ओम नारायण दूबे, अनिल कुमार मिश्र, गोविंद सिंह, इंदुभूषण तिवारी, दलजीत यादव, ऋषभ सिंह, अशोक सिंह, अमरजीत सिंह, योगी ओंकार अग्निवंशी, बद्री प्रसाद दूबे आशीष, रंजीत सिंह, सीमा सिंह, रेन्नू सिंह, अंशू सिह, मीनू सिह, रिषभ सिंह, शिव वरदान सिंह सहित बडी रुंख्या में श्रोतागण मौजूद रहे। व्यवस्थापक एडवोकेट आर पी सिंह व के पी सिंह ने कथा में पधारे सभी के प्रति आभार व्यक्त किया।
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