भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति के विविध रूप की झलक है सूर्योपासना का पर्व मकर संक्रांति
भारतीय ज्योतिष में 12 राशियों में से मकर राशि में सूर्य के प्रवेश को मकर संक्रांति कहते हैं। मकर संक्रांति शिशिर ऋतु की समाप्त और बसंत के आगमन का प्रतीक है। इसे भगवान भास्कर की उपासना एवं स्नान दान का पवित्रतम पर्व माना गया है। भारतीय संस्कृति और सभ्यता में त्योहारों का अपना विशेष महत्व है। भारत में मनाए जाने वाले त्योहारों के पीछे आध्यात्मिक और वैज्ञानिक कारक दोनों होते हैं। मकर संक्रांति पूरे भारत के साथ-साथ नेपाल में भी किसी न किसी रूप में मनाया जाता है। कई बार यह प्रश्न उठता है कि ज्यादातर त्यौहार की तारीख आगे पीछे हो जाती हैं परंतु मकर संक्रांति 14 या 15 जनवरी को ही पड़ती है। ऐसा होने के पीछे सामान्यतः कारण यह है कि भारतीय पंचांग पद्धति की तिथियां चंद्रमा की गति को आधार मानकर निर्धारित की जाती है किंतु मकर संक्रांति को सूर्य की गति से निर्धारित किया जाता है जो अक्सर जनवरी माह के 14 या 15 को ही पड़ता है क्योंकि इसी दिन सूर्य धनु राशि को छोड़कर मकर राशि में प्रवेश करता है। मकर संक्रांति के दिन से ही सूर्य की उत्तरायण गति भी प्रारंभ होती है इसलिए इस पर्व को लोहड़ी, पोंगल, खिचड़ी आदि भिन्न-भिन्न नामों से जाना जाता है। भारत और नेपाल में यह त्योहार अलग-अलग स्थानों पर अपनी अपनी मान्यताओं और आस्था के अनुसार मनाया जाता है। भारत में मकर मकर संक्रांति विभिन्न रूपों में मनाया जाता है। विभिन्न प्रांतों में इस त्यौहार को मनाने के जितने अधिक रूप प्रचलित हैं उतने किसी अन्य पर्व में नहीं। हरियाणा और पंजाब में इसे लोहड़ी के रूप में 1 दिन पूर्व यानी 13 जनवरी को ही मनाया जाता है। इस दिन अंधेरा होते ही आग जलाकर अग्नि देव की पूजा करते हुए तिल गुड़ चावल और भुने हुए मक्के की आहुति दी जाती है। इस सामग्री को तिलचौली कहा जाता है। इस अवसर पर लोग मूंगफली तिल की बनी हुई गजक और रेवड़ियां आपस में बांटकर खुशियां मनाते हैं। बहू ने घर-घर जाकर लोकगीत गाकर लोहड़ी मांगती हैं।
उत्तर प्रदेश में मकर संक्रांति मुख्य रूप से दान का पर्व माना जाता है। इस दिन श्रद्धालु प्रयागराज में गंगा जमुना सरस्वती के संगम स्थल पर स्नान कर अपनी सामर्थ्य के अनुसार दान करते हैं।मकर संक्रांति के पहले स्नान से ही प्रयागराज में हर साल माघ मेले की शुरुआत होती है जो शिवरात्रि के स्नान तक चलता है। समय के साथ लोग और मान्यताएं बदल गई हैं परंतु फिर भी ऐसा विश्वास है 14 जनवरी यानी मकर संक्रांति से पृथ्वी पर अच्छे दिनों की शुरुआत होती है।
महाराष्ट्र में इस दिन सभी विवाहित महिलाएं अपनी पहली संक्रांति पर कपास तेल और नमक आदि चीजें अन्य सुहागिन महिलाओं को दान करती हैं। तिल गुल नामक हलवे की बांटने की प्रथा भी है। लोग एक दूसरे को तिलगुल देते हैं और देते समय बोलते हैं कि तिल गुड़ लो और मीठा मीठा बोलो।
बंगाल में भी इस पर्व पर स्नान के पश्चात तिल दान करने की प्रथा है। यहां गंगासागर में प्रतिवर्ष विशाल मेला लगता है। मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में मिली थी। मान्यता यह भी है कि इस दिन यशोदा ने श्रीकृष्ण को प्राप्त करने के लिए व्रत किया था। इस दिन गंगा सागर में स्नान दान के लिए लाखों लोगों की भीड़ इकट्ठा होती है।
तमिलनाडु में इस त्यौहार को पोंगल के रूप में 4 दिन तक मनाते हैं। प्रथम दिन भोगी पोंगल, द्वितीय दिन सूर्य पोंगल, तृतीय दिन मट्टू पोंगल अथवा केनू पोंगल और चौथे व अंतिम दिन कन्या पोंगल। इस प्रकार पहले दिन कूड़ा करकट इकठ्ठा कर जलाया जाता है, दूसरे दिन लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है और तीसरे दिन पशुधन की पूजा की जाती है। पोंगल मनाने के लिए स्नान करके खुले आंगन में मिट्टी के बर्तन में खीर बनाई जाती है जिसे पोंगल कहते हैं। इसके बाद सूर्य देव को नैवेद्य चढ़ाया जाता है, उसके बाद खीर को प्रसाद के रूप में सभी ग्रहण करते हैं।
मकर संक्रांति का अपना ऐतिहासिक महत्व है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान भास्कर अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उनके घर जाते हैं क्योंकि शनिदेव मकर राशि के स्वामी हैं। अतः इस दिन को मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है। माना जाता है कि महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिए मकर संक्रांति का ही चयन किया था और मकर संक्रांति के दिन ही गंगा भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जा मिली थी।
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