स्कूल की बच्चियों ने एसडीएम कार्यालय को घेरा, विस्थापित गांव बखारी का निर्णय- रोड नहीं तो वोट नहीं
सिवनी। नर्मदा घाटी में बने बरगी बांध से सिवनी जिले के घंसौर विकास खंड का विस्थापित गांव के सैकङो महिला-पुरूष के अलावा स्कूली बच्चियां एसडीएम कार्यालय करने की अगुवाई कर रही थी। तहसीलदार ने ज्ञापन लेने कार्यालय से बाहर आए।बखारी के सरपंच असुन्ता राजेश कुमार मरावी ने क्षेत्र की विभिन्न समस्याओ को लेकर विस्तृत ज्ञापन दिया और बखारी का सङक निर्माण का मुद्दत उठाया। तहसीलदार अमृत लाल धुर्वे ने कहा कि इस ज्ञापन को जिले के वरिष्ठ अधिकारी तक भेज दिया जाएगा। वनभूमि के बदले सरकारी राजस्व भूमि दिया जाना है। परन्तु कुछ तकनीकी कारणों से मामला अटका है। इसी प्रकार विस्थापित गांव रोटो के लोगों ने भी घुटिया से बर्रा टोला तक सङक निर्माण की मांग रखी।उपस्थित बच्चियों ने कहा कि हमलोग गांव से केदारपुर तक पैदल स्कूल जाते आते थक चुकी हूं।
ज्ञात हो कि वन अधिकार कानून 2006 की धारा-3(2) के प्रावधानों के अनुसार स्कुल, अस्पताल, आंगनबाङी, राशन दुकान, बिजली, टेलीफोन लाईन, छोटे डेम, छोटी सिंचाई नहरें, सङकें आदि प्रत्येक के लिए ढाई एकङ तक वन भूमि दी जा सकेगी और उसमें 75 तक पेङ तक काटे जा सकेंगे। वन संरक्षण अधिनियम 1980 लागू होने के बाद आजतक केवल सिंचाई परियोजनाओ के कारण मध्यप्रदेश में 83 हजार हेक्टेयर वनभूमि गैर वनीकरण कार्य के लिए परिवर्तित किया गया है। जिसमें बरगी बांध में 8300 हेक्टेयर वन भूमि डूब में आया है। परन्तु विस्थापित गांव बखारी के सङक के लिए वनभूमि परिवर्तित नहीं किया जा सकता है। सवाल उठता है कि क्या सरकार के प्राथमिकता सूची विस्थापित परिवार हैं या नहीं? इस घेराव कार्यक्रम में बखारी, धुमा, पीपा टोला, छिंदवाहा, पिपरिया, रोटो, घुटीया, अनकवाङा, चरगांव, उमरडीह, राजगढ, केदारपुर, जामुन पानी,अंडिया, दमपुरी, पददीकोना, भिलाई पिपरिया आदि गांव के महिला पुरूष, जनपद सदस्य चंद्रशेखर चतुर्वेदी, जनपद सदस्य लोकु प्रसाद, महिपाल भगदिया पूर्व जिला पंचायत सदस्य, बसोरी नेटी, रामसिंह, शहद सिंह, मुलचंद मरावी, गुलाब झारिया और बरगी बांध विस्थापित एवं प्रभावित संघ के राज कुमार सिंह एवं शारदा यादव शामिल थे।
सिवनी। नर्मदा घाटी में बने बरगी बांध से सिवनी जिले के घंसौर विकास खंड का विस्थापित गांव के सैकङो महिला-पुरूष के अलावा स्कूली बच्चियां एसडीएम कार्यालय करने की अगुवाई कर रही थी। तहसीलदार ने ज्ञापन लेने कार्यालय से बाहर आए।बखारी के सरपंच असुन्ता राजेश कुमार मरावी ने क्षेत्र की विभिन्न समस्याओ को लेकर विस्तृत ज्ञापन दिया और बखारी का सङक निर्माण का मुद्दत उठाया। तहसीलदार अमृत लाल धुर्वे ने कहा कि इस ज्ञापन को जिले के वरिष्ठ अधिकारी तक भेज दिया जाएगा। वनभूमि के बदले सरकारी राजस्व भूमि दिया जाना है। परन्तु कुछ तकनीकी कारणों से मामला अटका है। इसी प्रकार विस्थापित गांव रोटो के लोगों ने भी घुटिया से बर्रा टोला तक सङक निर्माण की मांग रखी।उपस्थित बच्चियों ने कहा कि हमलोग गांव से केदारपुर तक पैदल स्कूल जाते आते थक चुकी हूं।
ज्ञात हो कि वन अधिकार कानून 2006 की धारा-3(2) के प्रावधानों के अनुसार स्कुल, अस्पताल, आंगनबाङी, राशन दुकान, बिजली, टेलीफोन लाईन, छोटे डेम, छोटी सिंचाई नहरें, सङकें आदि प्रत्येक के लिए ढाई एकङ तक वन भूमि दी जा सकेगी और उसमें 75 तक पेङ तक काटे जा सकेंगे। वन संरक्षण अधिनियम 1980 लागू होने के बाद आजतक केवल सिंचाई परियोजनाओ के कारण मध्यप्रदेश में 83 हजार हेक्टेयर वनभूमि गैर वनीकरण कार्य के लिए परिवर्तित किया गया है। जिसमें बरगी बांध में 8300 हेक्टेयर वन भूमि डूब में आया है। परन्तु विस्थापित गांव बखारी के सङक के लिए वनभूमि परिवर्तित नहीं किया जा सकता है। सवाल उठता है कि क्या सरकार के प्राथमिकता सूची विस्थापित परिवार हैं या नहीं? इस घेराव कार्यक्रम में बखारी, धुमा, पीपा टोला, छिंदवाहा, पिपरिया, रोटो, घुटीया, अनकवाङा, चरगांव, उमरडीह, राजगढ, केदारपुर, जामुन पानी,अंडिया, दमपुरी, पददीकोना, भिलाई पिपरिया आदि गांव के महिला पुरूष, जनपद सदस्य चंद्रशेखर चतुर्वेदी, जनपद सदस्य लोकु प्रसाद, महिपाल भगदिया पूर्व जिला पंचायत सदस्य, बसोरी नेटी, रामसिंह, शहद सिंह, मुलचंद मरावी, गुलाब झारिया और बरगी बांध विस्थापित एवं प्रभावित संघ के राज कुमार सिंह एवं शारदा यादव शामिल थे।
सिवनी। नर्मदा घाटी में बने बरगी बांध से सिवनी जिले के घंसौर विकास खंड का विस्थापित गांव के सैकङो महिला-पुरूष के अलावा स्कूली बच्चियां एसडीएम कार्यालय करने की अगुवाई कर रही थी। तहसीलदार ने ज्ञापन लेने कार्यालय से बाहर आए।बखारी के सरपंच असुन्ता राजेश कुमार मरावी ने क्षेत्र की विभिन्न समस्याओ को लेकर विस्तृत ज्ञापन दिया और बखारी का सङक निर्माण का मुद्दत उठाया। तहसीलदार अमृत लाल धुर्वे ने कहा कि इस ज्ञापन को जिले के वरिष्ठ अधिकारी तक भेज दिया जाएगा। वनभूमि के बदले सरकारी राजस्व भूमि दिया जाना है। परन्तु कुछ तकनीकी कारणों से मामला अटका है। इसी प्रकार विस्थापित गांव रोटो के लोगों ने भी घुटिया से बर्रा टोला तक सङक निर्माण की मांग रखी।उपस्थित बच्चियों ने कहा कि हमलोग गांव से केदारपुर तक पैदल स्कूल जाते आते थक चुकी हूं।
ज्ञात हो कि वन अधिकार कानून 2006 की धारा-3(2) के प्रावधानों के अनुसार स्कुल, अस्पताल, आंगनबाङी, राशन दुकान, बिजली, टेलीफोन लाईन, छोटे डेम, छोटी सिंचाई नहरें, सङकें आदि प्रत्येक के लिए ढाई एकङ तक वन भूमि दी जा सकेगी और उसमें 75 तक पेङ तक काटे जा सकेंगे। वन संरक्षण अधिनियम 1980 लागू होने के बाद आजतक केवल सिंचाई परियोजनाओ के कारण मध्यप्रदेश में 83 हजार हेक्टेयर वनभूमि गैर वनीकरण कार्य के लिए परिवर्तित किया गया है। जिसमें बरगी बांध में 8300 हेक्टेयर वन भूमि डूब में आया है। परन्तु विस्थापित गांव बखारी के सङक के लिए वनभूमि परिवर्तित नहीं किया जा सकता है। सवाल उठता है कि क्या सरकार के प्राथमिकता सूची विस्थापित परिवार हैं या नहीं? इस घेराव कार्यक्रम में बखारी, धुमा, पीपा टोला, छिंदवाहा, पिपरिया, रोटो, घुटीया, अनकवाङा, चरगांव, उमरडीह, राजगढ, केदारपुर, जामुन पानी,अंडिया, दमपुरी, पददीकोना, भिलाई पिपरिया आदि गांव के महिला पुरूष, जनपद सदस्य चंद्रशेखर चतुर्वेदी, जनपद सदस्य लोकु प्रसाद, महिपाल भगदिया पूर्व जिला पंचायत सदस्य, बसोरी नेटी, रामसिंह, शहद सिंह, मुलचंद मरावी, गुलाब झारिया और बरगी बांध विस्थापित एवं प्रभावित संघ के राज कुमार सिंह एवं शारदा यादव शामिल थे।
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