क्यों मनाया जाता है मोहर्रम जानिए क्या हुआ था कर्बला की जंग में
केएमबी सवाददाता
सुल्तानपुर। मोहर्रम के महीने में 61वी. हिजरी तारीख–ए– इस्लाम में कर्बला की जंग हुई थी इस जंग में इंसान के लिए और जुल्म के खिलाफ लड़ाई लड़ी गई थी,इस जंग में पैगंबर मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के नवासे और उनके 72 साथियों को शहीद कर दिया गया था। मुवाविया नाम के शासक के निधन के बाद उनका राज पाट उनके बेटे यजीद को मिला. यजीद इस्लाम धर्म का खलीफा बनाकर बैठ गया था वह अपने वर्चस्व को पूरे अरब में फैलाना चाहता था लेकिन इसके सामने पैगंबर मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के खानदान का इकलौता चिराग इमाम हुसैन बड़ी चुनौती बनकर खड़े थे कर्बला में सन, 61 हिजरी से यजीद का जुल्म हद से ज्यादा बढ़ने लगा तो यजीद के जुल्म को दुनिया से मिटाने के लिए हजरत इमाम हुसैन अपने परिवार और साथियों के साथ मदीना से इराक के शहर कूफा जाने लगे रास्ते में यजीद की फौज ने कर्बला के रेगिस्तान पर इमाम हुसैन के काफिले को रोक दिया। वह मोहर्रम का दिन था जब इमाम हुसैन का काफिला कर्बला में ठहरा वहां पानी का एकमात्र स्रोत फरात नदी थी जिस पर छह मोहर्रम से यजीद की फौज ने इमाम हुसैन के काफिले पर पानी पीने पर रोक लगा दी इसके बाद भी हजरत इमाम हुसैन ने उस जालिम के सामने सर नहीं झुकाया और उससे जंग लड़नी पड़ी इतिहास के अनुसार यजीद की 80000 फौजी के साथ हजरत इमाम हुसैन के 72 बहादुरों ने जंग लड़ी और 10 मोहरम को असर की नमाज के वक्त जैसे ही हजरत इमाम हुसैन सजदे में गए तो जालिमों ने उन्हें भी शहीद कर दिया। इसी तरह लड़ते-लड़ते इस्लाम के 72 बहादुरों ने शहादत पाई और यजीद का जुल्म दुनिया से मिट गया लेकिन इस्लाम हमेशा के लिए फिर से जिंदा होगाया। हजरत इमाम हुसैन की याद में मोहर्रम का त्यौहार मनाया जाता है और इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार इस्लाम धर्म के नए साल की शुरुआत का पहला महीना भी मोहर्रम का होता है।
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