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धूमधाम से आज मनाया जा रहा है नाग पंचमी का पावन एवं फलदाई त्यौहार

धूमधाम से आज मनाया जा रहा है नाग पंचमी का पावन एवं फलदाई त्यौहार

केएमबी संवाददाता
इस बार नाग पंचमी 09 अगस्त 2024 को मनाई जा रही है। नाग पंचमी का एक ऐसा त्योहार जो देशभर के लगभग सभी राज्यों में बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। हिंदू धर्म में नाग पंचमी सबसे प्रमुख त्योहारों में से एक है। भारत, नेपाल और हिंदू आबादी वाले अन्य दक्षिण एशियाई देशों में लोग इस त्योहार पर नाग की पूजा करते हैं। नाग पंचमी श्रावण मास के शुक्ल पक्ष में मनाई जाती है। मान्यताओं के अनुसार नाग पंचमी के दिन नागों की पूजा करने से व्यक्ति के जीवन में आध्यात्मिक शक्ति, मनोवांछित फल और अपार धन की प्राप्ति होती है।

नाग पंचमी का मुहूर्त
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इस साल के श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचम तिथि यानी 09 अगस्त 2024 को सुबह 05:47 से 08:26 तक रहेगा। कुल मिलाकर 2 घंटे 39 मिनट के लिए पूजा का मुहूर्त है।

नाग पंचमी की पूजा विधि
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नाग पंचमी के दिन सबसे पहले सुबह सूर्योदय से पहले उठकर नित्य कर्मों से मुक्त हो लें, फिर स्नान करें। इसके बाद शिव जी के साथ-साथ नाग देवता की पूजा करें। नाग देवता की पूजा में फल, फूल, मिठाई और दूध अर्पित करें। मान्यताओं के अनुसार जिन जातकों की कुंडली में कालसर्प दोष या फिर राहु-केतु से संबंधित कोई दोष हो तो नाग पंचमी के दिन नाग देवता की पूजा जरूर करनी चाहिए।

नाग पंचमी का महत्व
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नाग पंचमी का त्योहार नागों, सांपों की पूजा के लिए समर्पित है। महाभारत में, राजा जनमेजय ने अपने पिता राजा परीक्षित की मृत्यु का बदला लेने के लिए नागों का नरसंहार करने के लिए यज्ञ शुरू किया था। ऋषि आस्तिक ने नागों को बचाने के लिए हस्तक्षेप किया और यज्ञ रोकने में सफल रहे। यज्ञ रुकने का दिन पंचमी तिथि था, जो आज नाग पंचमी के रूप में मनाया जाता है। हिंदू धर्म में, नागों को अत्यंत पूजनीय माना जाता है। ऋषियों, देवताओं, और राजाओं को अक्सर नागों के साथ चित्रित किया जाता है। 
नाग पंचमी के दिन, लोग अपने घरों में नाग देवता की पूजा करते हैं, उन्हें दूध, चावल, फूल और मिठाई आदि अर्पित करते हैं। कुछ लोग नागों को भी दूध पिलाते हैं या नाग मंदिरों में दर्शन करने जाते हैं। यह माना जाता है कि नाग पंचमी का त्योहार मनाने से भगवान शिव और नाग देवता प्रसन्न होते हैं और भक्तों को आरोग्य, समृद्धि और मोक्ष प्रदान करते हैं। यह त्योहार हमें प्रकृति का सम्मान करने और सभी जीवों, चाहे वे कितने ही छोटे या भयानक क्यों न हों, के प्रति दयालु होने का संदेश भी देता है।

नाग पंचमी की कथा 
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प्राचीन काल में एक सेठजी के सात पुत्र थे। सातों के विवाह हो चुके थे। सबसे छोटे पुत्र की पत्नी श्रेष्ठ चरित्र की विदूषी और सुशील थी, परंतु उसके भाई नहीं था। एक दिन बड़ी बहू ने घर लीपने को पीली मिट्टी लाने के लिए सभी बहुओं को साथ चलने को कहा तो सभी धलिया और खुरपी लेकर मिट्टी खोदने लगी। तभी वहां एक सर्प निकला, जिसे बड़ी बहू खुरपी से मारने लगी। यह देखकर छोटी बहू ने उसे रोकते हुए कहा- 'मत मारो इसे? यह बेचारा निरपराध है।' 
यह सुनकर बड़ी बहू ने उसे नहीं मारा तब सर्प एक ओर जा बैठा। तब छोटी बहू ने उससे कहा-'हम अभी लौट कर आती हैं तुम यहां से जाना मत। यह कहकर वह सबके साथ मिट्टी लेकर घर चली गई और वहां कामकाज में फंसकर सर्प से जो वादा किया था उसे भूल गई।
उसे दूसरे दिन वह बात याद आई तो सब को साथ लेकर वहां पहुंची और सर्प को उस स्थान पर बैठा देखकर बोली- सर्प भैया नमस्कार! सर्प ने कहा- 'तू भैया कह चुकी है, इसलिए तुझे छोड़ देता हूं, नहीं तो झूठी बात कहने के कारण तुझे अभी डस लेता। वह बोली- भैया मुझसे भूल हो गई, उसकी क्षमा मांगती हूँ, तब सर्प बोला- अच्छा, तू आज से मेरी बहन हुई और मैं तेरा भाई हुआ। तुझे जो मांगना हो, मांग ले। वह बोली- भैया! मेरा कोई नहीं है, अच्छा हुआ जो तू मेरा भाई बन गया।
कुछ दिन व्यतीत होने पर वह सर्प मनुष्य का रूप रखकर उसके घर आया और बोला कि 'मेरी बहन को भेज दो।' सबने कहा कि 'इसके तो कोई भाई नहीं था, तो वह बोला- मैं दूर के रिश्ते में इसका भाई हूं, बचपन में ही बाहर चला गया था। उसके विश्वास दिलाने पर घर के लोगों ने छोटी को उसके साथ भेज दिया। उसने मार्ग में बताया कि 'मैं वहीं सर्प हूं, इसलिए तू डरना नहीं और जहां चलने में कठिनाई हो वहां मेरी पूंछ पकड़ लेना। उसने कहे अनुसार ही किया और इस प्रकार वह उसके घर पहुंच गई। वहां के धन-ऐश्वर्य को देखकर वह चकित हो गई।
एक दिन सर्प की माता ने उससे कहा- 'मैं एक काम से बाहर जा रही हूँ, तू अपने भाई को ठंडा दूध पिला देना। उसे यह बात ध्यान न रही और उससे गर्म दूध पिला दिया, जिसमें उसका मुख बेतरह जल गया। यह देखकर सर्प की माता बहुत क्रोधित हुई। परंतु सर्प के समझाने पर शांत हो गई। तब सर्प ने कहा कि बहिन को अब उसके घर भेज देना चाहिए। तब सर्प और उसके पिता ने उसे बहुत सा सोना, चांदी, जवाहरात, वस्त्र-भूषण आदि देकर उसके घर पहुंचा दिया। इतना ढेर सारा धन देखकर बड़ी बहू ने ईर्ष्या से कहा- भाई तो बड़ा धनवान है, तुझे तो उससे और भी धन लाना चाहिए। सर्प ने यह वचन सुना तो सब वस्तुएं सोने की लाकर दे दीं। यह देखकर बड़ी बहू ने कहा- 'इन्हें झाड़ने की झाड़ू भी सोने की होनी चाहिए'। तब सर्प ने झाडू भी सोने की लाकर रख दी। सर्प ने छोटी बहू को हीरा-मणियों का एक अद्भुत हार दिया था। उसकी प्रशंसा उस देश की रानी ने भी सुनी और वह राजा से बोली कि- सेठ की छोटी बहू का हार यहां आना चाहिए।' राजा ने मंत्री को हुक्म दिया कि उससे वह हार लेकर शीघ्र उपस्थित हो मंत्री ने सेठजी से जाकर कहा कि 'महारानीजी छोटी बहू का हार पहनेंगी, वह उससे लेकर मुझे दे दो'। सेठजी ने डर के कारण छोटी बहू से हार मंगाकर दे दिया। छोटी बहू को यह बात बहुत बुरी लगी, उसने अपने सर्प भाई को याद किया और आने पर प्रार्थना की- भैया ! रानी ने हार छीन लिया है, तुम कुछ ऐसा करो कि जब वह हार उसके गले में रहे, तब तक के लिए सर्प बन जाए और जब वह मुझे लौटा दे तब हीरों और मणियों का हो जाए। सर्प ने ठीक वैसा ही किया। जैसे ही रानी ने हार पहना, वैसे ही वह सर्प बन गया। यह देखकर रानी चीख पड़ी और रोने लगी।
यह देख कर राजा ने सेठ के पास खबर भेजी कि छोटी बहू को तुरंत भेजो। सेठजी डर गए कि राजा न जाने क्या करेगा? वे स्वयं छोटी बहू को साथ लेकर उपस्थित हुए। राजा ने छोटी बहू से पूछा- तुने क्या जादू किया है, मैं तुझे दंड दूंगा। छोटी बहू बोली- राजन ! धृष्टता क्षमा कीजिए, यह हार ही ऐसा है कि मेरे गले में हीरों और मणियों का रहता है और दूसरे के गले में सर्प बन जाता है। यह सुनकर राजा ने वह सर्प बना हार उसे देकर कहा- अभी पहनकर दिखाओ। छोटी बहू ने जैसे ही उसे पहना वैसे ही हीरों-मणियों का हो गया।
यह देखकर राजा को उसकी बात का विश्वास हो गया और उसने प्रसन्न होकर उसे बहुत सी मुद्राएं भी पुरस्कार में दीं। छोटी वह अपने हार और इन सहित घर लौट आई। उसके धन को देखकर बड़ी बहू ने ईर्ष्या के कारण उसके पति को सिखाया कि छोटी बहू के पास कहीं से धन आया है। यह सुनकर उसके पति ने अपनी पत्नी को बुलाकर कहा- ठीक-ठीक बता कि यह धन तुझे कौन देता है? तब वह सर्प को याद करने लगी। तब उसी समय सर्प ने प्रकट होकर कहा- यदि मेरी धर्म बहन के आचरण पर संदेह प्रकट करेगा तो मैं उसे खा लूंगा। यह सुनकर छोटी बहू का पति बहुत प्रसन्न हुआ और उसने सर्प देवता का बड़ा सत्कार किया। उसी दिन से नागपंचमी का त्योहार मनाया जाता है और स्त्रियां सर्प को भाई मानकर उसकी पूजा करती हैं। 

राजेन्द्र गुप्ता,
ज्योतिषी और हस्तरेखाविद
मो. 9116089175
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