सेफ्टी टैंक से मिला पत्रकार का शव: जान देकर चुकानी पड़ी भ्रष्टाचार उजागर करने की क़ीमत
छत्तीसगढ़। एक तरफ लोग नया साल का जश्न मान रहे थे तो वहीं दूसरी तरफ एक स्वतंत्र पत्रकार पर हमला किया जा रहा था। हमला करने के बाद उन्हें सेफ्टी टैंक में चुनवा दिया गया। बस स्वतंत्र पत्रकार मुकेश चंद्राकर का कसूर इतना था कि उन्होंने एक सड़क का भ्रष्टाचार को उजागर किया था।
खबर प्रकाशित होने के बाद से ठेकेदार पर एक्शन लिया गया और उसी बजट में पुनः सड़क बनाने के लिए अधिकारियों द्वारा निर्देश दिया गया। जिसको लेकर ठेकेदार अपने भाई के साथ प्लानिंग किया और पत्रकार मुकेश चंद्राकर को फोन करके मिलने के लिए अपने ठिकाने पर बुलाने लगा। हालांकि कई दिनों तक पत्रकार मुकेश चंद्राकर ठेकेदार से मिलने नहीं गए। 1 जनवरी को ठेकेदार का भाई फिर फोन किया और फोन पर अपने ठिकाने पर बुलाने में सफल हो गया। जहां पर सर पर धारदार हथियार से वार किया गया, बेरहमी से मारा पीटा गया और बाद में सेफ्टी टैंक में चुनवा दिया गया।
आखिर हमारे देश में निर्भीक, निष्पक्ष, होकर निस्संदेह निस्वार्थ भाव से अपराध, भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज बुलंद करने वाले पत्रकार साथियों को अपनी जान को क्यों गंवानी पड़ती है। एक पत्रकार देशवासियों के लिए देश के लिए पत्रकारिता करके अपने जान को जोखिम में डालकर अपने घर परिवार से हमेशा हमेशा के लिए दूर हो जाता है और धीरे-धीरे लोग उनको भूल जाते हैं। इसी तरह चलता रहा तो कौन पत्रकार सच लिखने की सच बोलने की भ्रष्टाचार उजागर करने की हिम्मत कर पायेगा। सरकार को भ्रष्टाचार के खिलाफ अपराध के खिलाफ काम करने वाले पत्रकार साथियों को सुरक्षा मुहैया कराने की कोशिश करना चाहिए, इस पर कानून बनाना चाहिए। कोई पत्रकार देश के लिए काम करते करते शहीद हो जाये तो उनके परिवार में किसी को सरकारी नौकरी, पचास लाख रुपये देने की योजना बनाई जानी चाहिए और पत्रकारों के हत्यारे को फांसी की सजा होनी चाहिए। तब हो सकता है अपराधियों के बुलंद हौसले पर अंकुश लगेगा पत्रकार अपनी जिम्मेदारी को बाखूबी निभा पायेंगे और भ्रष्टाचार, अपराध में गिरावट आयेंगी। मुकेश चंद्राकर जैसे ईमानदार निर्भीक निष्पक्ष होकर पत्रकारिता करने वाले पत्रकार साथी हमारे बीच रहेंगे।
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